01-02-94  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

त्रिकालदर्शी स्थिति के श्रेष्ठ आसन द्वारा सदा विजयी बनो

दिव्य बुद्धि वा विशाल बुद्धि का वरदान देने वाले त्रिकालदर्शी बापदादा अपने मास्टर त्रिकालदर्शी बच्चों प्रति बोले-

आज त्रिकालदर्शी बापदादा अपने सर्व मास्टर त्रिकालदर्शी बच्चों को देख रहे हैं। त्रिकालदर्शी बनने का साधन बापदादा ने हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान वा ब्राह्मण जन्म की विशेष सौगात दी है। क्योंकि दिव्य बुद्धि द्वारा ही बाप को, अपने आपको और तीनों कालों को स्पष्ट जान सकते हो। दिव्य बुद्धि तथा याद द्वारा ही सर्व शक्तियों को धारण कर सकते हो। इसलिये पहला वरदान दिव्य बुद्धि है। ये वरदान बापदादा ने सर्व बच्चों को दिया है। लेकिन इस वरदान को प्रत्यक्ष जीवन में नम्बरवार कार्य में लगाते हो। दिव्य बुद्धि त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव कराती है। चारों ही सब्जेक्ट धारण करने का आधार दिव्य बुद्धि है। चारों ही सब्जेक्ट को सभी बच्चे अच्छी तरह से जानते हैं, वर्णन भी करते हैं लेकिन जानना, वर्णन करना-यह सभी को आता है। चाहे नये हैं, चाहे पुराने हैं, इसमें सभी होशियार हैं लेकिन धारण करना-इसमें नम्बर बन जाते हैं। दिव्य बुद्धि की विशेषतायें, दिव्य बुद्धि वाली आत्मायें कोई भी संकल्प को कर्म वा वाणी में लाने समय हर बोल और हर कर्म को तीनों काल से जान कर फिर प्रैक्टिकल में आती हैं। साधारण बुद्धि वाली आत्मायें बहुत करके वर्तमान को स्पष्ट जानती हैं लेकिन भविष्य और भूतकाल को स्पष्ट नहीं जानतीं। दिव्य बुद्धि वाली आत्मा को पास्ट और फ्युचर भी इतना ही स्पष्ट होता है जैसे प्रेजेन्ट स्पष्ट है। तीनों ही काल साथ-साथ स्पष्ट अनुभव होता है। वैसे सभी कहते भी हैं कि जो सोचो, जो करो, जो बोलो, आगे-पीछे को सोच-समझ करके करो। कर्म के पहले परिणाम को सामने रखो, परिणाम हुआ भविष्य। तो नम्बरवन है त्रिकालदर्शी बुद्धि। त्रिकालदर्शी बुद्धि कभी असफलता का अनुभव नहीं करेगी। लेकिन बच्चों में तीन प्रकार की बुद्धि वाले हैं। पहला नम्बर सुनाया सदा त्रिकालदर्शी बुद्धि। दूसरा नम्बर कभी त्रिकालदर्शी और कभी एक कालदर्शी। तीसरा नम्बर अलबेली बुद्धि, जो सदा वर्तमान को देखते, सदा यही सोचते कि जो अभी हो रहा है या मिल रहा है वा चल रहा है इसमें ठीक रहें, भविष्य क्या होगा इसको क्या सोचें। लेकिन अलबेली बुद्धि आदि-मध्य-अन्त को न सोचने के कारण सदा सफलता प्राप्त करने में धोखा खा लेती है। तो बनना है त्रिकालदर्शी बुद्धि।

त्रिकालदर्शी स्थिति ऐसा श्रेष्ठ आसन है जिस आसन अर्थात् स्थिति द्वारा स्वयं भी सदा विजयी और दूसरों को भी विजयी बनने की शक्ति वा सहयोग देने वाले हैं। दिव्य बुद्धि विशाल बुद्धि है। दिव्य बुद्धि बेहद की बुद्धि है। तो चेक करो कि स्वयं की बुद्धि किस नम्बर की बनाई है? बापदादा ने बच्चों की रिजल्ट में देखा कि ज्ञान, गुण, शक्तियों का खज़ाना जमा सभी बच्चों के पास है लेकिन जमा होते भी नम्बरवार क्यों हैं? ऐसा कोई भी नहीं दिखाई दिया जिसके पास खज़ाने जमा नहीं हों। सभी के पास जमा हैं ना! फिर नम्बरवार क्यों? अगर किसी से भी पूछेंगे-स्वयं का ज्ञान है, बाप का ज्ञान है, चक्कर का ज्ञान है, कर्मों के गति का ज्ञान है? सभी के पास सर्वशक्तियाँ हैं कि कोई हैं, कोई नहीं हैं? ज्ञान में सभी ने हाँ किया और शक्तियों में हाँ क्यों नहीं किया? अच्छा, सभी गुण हैं? सर्व गुण बुद्धि में हैं? बुद्धि में ज्ञान भी है, शक्तियाँ भी हैं फिर नम्बरवार क्यों? फर्क क्या होता है? खज़ाने को विधिपूर्वक कार्य में लगाना नहीं आता है समय बीत जाता है फिर सोचते हैं कि ऐसे करते थे, इस विधि से चलते थे तो सिद्धि मिल जाती थी। तो समय को जानना और समय प्रमाण शक्ति वा गुण वा ज्ञान को कार्य में लगाना-इसके लिये दिव्य बुद्धि की विशेषता आवश्यक है। वैसे ज्ञान की पाइंट्स बहुत सोचते रहते हैं, सुनाते भी रहते हैं, कापियों में भी भरी हुई रहती हैं, सबके पास कितनी डायरियां इकùी हुई होंगी, काफी स्टॉक हो गया है ना, तो जैसे बाप के लिये गाया हुआ है कि मैं जो हूँ, जैसा हूँ वैसे मुझे जानने वाले कोटों में कोई हैं। जानते तो सभी हैं लेकिन अण्डरलाइन है-जो हूँ, जैसा हूँ, उसमें अन्तर पड़ जाता है। इसी रीति जैसा समय और जो ज्ञान की पाइंट या गुण या शक्ति आवश्यक है वैसा कार्य में लगाना इसमें अन्तर पड़ जाता है और इसी अन्तर के कारण नम्बर बन जाते हैं। तो कारण समझा? एक तो समय प्रमाण विधि का अन्तर पड़ जाता है, दूसरा कोई भी कर्म वा संकल्प त्रिकालदर्शी बन नहीं करते, इसलिये नम्बर बन जाते हैं। कोई भी संकल्प बुद्धि में आता है तो संकल्प है बीज, वाचा और कर्मणा बीज का विस्तार है, अगर संकल्प अर्थात् बीज को त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर चेक करो, शक्तिशाली बनाओ तो वाणी और कर्म में स्वत: ही सहज सफलता है ही है। संकल्प को चेक नहीं करते अर्थात् बीज शक्तिशाली नहीं होता तो वाणी और कर्म में भी सिद्धि की शक्ति नहीं रहती। लक्ष्य सभी का सिद्धि स्वरूप बनने का है ना, तो सदा सिद्धि स्वरूप बनने की विधि जो सुनाई, उसको चेक करो। बीच-बीच में बुद्धि अलबेली बन जाती है इसलिये कभी सिद्धि अनुभव करते और कभी मेहनत अनुभव करते।

बापदादा का सभी बच्चों से प्यार की निशानी है कि सब बच्चे सदा सहज सिद्धि स्वरूप बन जायें। आपके जड़ चित्रों द्वारा भक्त आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती रहती हैं, तो चैतन्य में सिद्धि स्वरूप बने हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी और आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती रहती हैं। जो त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रहते हैं तो त्रिकालदर्शी स्थिति समर्थ स्थिति है। इस समर्थ स्थिति वाले व्यर्थ को ऐसा सहज समाप्त कर देते हैं जो स्वप्न मात्र भी व्यर्थ समाप्त हो जाता है। अगर त्रिकालदर्शी बुद्धि द्वारा कर्म नहीं करते हैं तो व्यर्थ का बोझ बार-बार ऊंचे नम्बर में अधिकारी बनने नहीं देता। तो दिव्य बुद्धि का वरदान सदा हर समय कार्य में लगाओ।

बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि ज्ञानी-योगी आत्मायें बने हो, अबज्ञान और योग को, शक्ति को प्रयोग में लाने वाले प्रयोगशाली आत्मायें बनो। जैसे साइन्स की शक्ति का प्रयोग दिखाई देता है ना, लेकिन साइन्स की शक्ति के प्रयोग का भी मूल आधार क्या है? आज जो भी साइन्स ने प्रयोग के साधन दिये हैं, उन सब साधनों का आधार क्या है? साइन्स के प्रयोग का आधार क्या है? मैजारिटी देखेंगे लाइट है। लाइट द्वारा ही प्रयोग होता है। अगर कम्प्युटर भी चलता है तो किसके आधार से? कम्प्युटर माइट है लेकिन आधार लाइट है ना। तो आपके साइलेन्स की शक्ति का भी आधार क्या है? लाइट है ना। जब वह प्रकृति की लाइट द्वारा एक लाइट अनेक प्रकार के प्रयोग प्रैक्टिकल में करके दिखाती है तो आपकी अविनाशी परमात्म लाइट, आत्मिक लाइट और साथ-साथ प्रैक्टिकल स्थिति लाइट, तो उससे क्या नहीं प्रयोग हो सकता! आपके पास स्थिति भी लाइट है और मूल स्वरूप भी लाइट है। जब भी कोई प्रयोग करना चाहते हो तो पहले अपने मूल आधार को चेक करो। जैसे कोई भी साइन्स के साधन को यूज़ करेंगे तो पहले चेक करेंगे ना कि लाइट है या नहीं है। ऐसे जब योग का, शक्तियों का, गुणों का प्रयोग करते हो तो पहले ये चेक करो कि मूल आधार आत्मिक शक्ति, परमात्म शक्ति वा लाइट (हल्की) स्थिति है? अगर स्थिति और स्वरूप डबल लाइट है तो प्रयोग की सफलता बहुत सहज कर सकते हो। और सबसे पहले इस अभ्यास को शक्तिशाली बनाने के लिये पहले अपने पर प्रयोग करके देखो। हर मास वा हर 15 दिन के लिये कोई न कोई विशेष गुण वा कोई न कोई विशेष शक्ति का स्व प्रति प्रयोग करके देखो। क्योंकि संगठन में वा सम्बन्ध-सम्पर्क में पेपर तो आते ही हैं तो पहले अपने ऊपर प्रयोग में चेक करो कोई भी पेपर आया लेकिन जो शक्ति वा जो गुण का प्रयोग करने का लक्ष्य रखा, उसमें कहाँ तक सफलता मिली? और कितने समय में सफलता मिली? जैसे साइन्स का प्रयोग दिन-प्रतिदिन थोड़े समय में प्रत्यक्ष रूप का अनुभव कराने में आगे बढ़ रहा है तो समय भी कम करते जाते हैं। थोड़े समय में सफलता जयादा-यह साइन्स वालों का भी लक्ष्य है। ऐसे जो भी लक्ष्य रखा उसमें समय को भी चेक करो और सफलता को भी चेक करो। जब स्व के प्रति प्रयोग में सफल हो जायेंगे तो दूसरी आत्माओं के प्रति प्रयोग करना सहज हो जायेगा और जब स्व के प्रति सफलता अनुभव करेंगे तो आपके दिल में औरों के प्रति प्रयोग करने का उमंग-उत्साह स्वत: ही बढ़ता जायेगा। अन्य आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में स्व के प्रयोग द्वारा उन आत्माओं को भी आपके प्रयोग का प्रभाव स्वत: ही पड़ता रहेगा। जैसे एक दृष्टान्त सामने रखो कि मुझे सहनशक्ति का प्रयोग करना है तो जब स्वयं में सहनशक्ति का प्रयोग करेंगे तो जो दूसरी आत्मायें आपकी सहनशक्ति को हिलाने के निमित्त हैं वो भी बच जायेंगी ना, उनका भी तो किनारा हो जायेगा। और जैसे छोटे-छोटे संगठन में रहते हो, सेन्टर्स हैं तो सेन्टर्स पर छोटे संगठन हैं ना तो पहले स्व के प्रति ट्रायल करो फिर अपने छोटे संगठन में ट्रायल करो। संगठन रूप में कोई भी गुण वा शक्ति के प्रयोग का प्रोग्राम बनाओ। उससे क्या होगा? संगठन की शक्ति से उसी गुण वा शक्ति का वायुमण्डल बन जायेगा, वायब्रेशन फैलेगा और वायुमण्डल वा वायब्रेशन का प्रभाव अनेक आत्माओं के ऊपर पड़ता ही है। तो ऐसे प्रयोगशाली आत्मायें बनो। पहले स्वयं में सन्तुष्टता का अनुभव करो फिर औरों में सहज हो जायेगा। क्योंकि विधि आ जायेगी। जैसे साइन्स के कोई भी साधन को पहले सेम्पल के रूप में प्रयोग करते हैं फिर विशाल रूप में प्रयोग करते हैं, ऐसे आप पहले स्वयं को सेम्पल के रीति से यूज़ करो। और ये प्रयोग करने की रूचि बढ़ती जायेगी और बुद्धि-मन इसमें बिजी रहेगा, तो छोटी-छोटी बातों में जो समय लगाते हो, शक्तियाँ लगाते हो उनकी बचत हो जायेगी। सहज ही अन्तर्मुखता की स्थिति अपनी तरफ आकर्षित करेगी। क्योंकि कोई भी चीज़ का प्रयोग और प्रयोग की सफलता स्वत: ही और सब तरफ से किनारा करा देती है। ये प्रयोग तो सभी कर सकते हो ना, कि मुश्किल है? इस वर्ष प्रयोगशाली आत्मायें बनो। समझा क्या करना है? और हर एक स्वयं के प्रति प्रयोग में लग जायेंगे तो प्रयोगशाली आत्माओं का संगठन कितना पॉवरफुल बन जायेगा! वह संगठन की किरणें अर्थात् वायब्रेशन्स बहुत कार्य करके दिखायेंगी। इसमें सिर्फ दृढ़ता चाहिये-’मुझे करना ही है’। दूसरों के अलबेलेपन का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिये। आपकी दृढ़ता का प्रभाव औरों पर पड़ना चाहिये। क्योंक दृढ़ता की शक्ति श्रेष्ठ है या अलबेलेपन की शक्ति श्रेष्ठ है? बापदादा का वरदान है जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है ही। तो क्या बनेंगे?प्रयोगशाली, त्रिकालदर्शी आसनधारी। और तीसरा क्या करेंगे? जैसा समय, वैसी विधि से सिद्धि स्वरूप। तो वर्ष का ये होमवर्क है। ये होमवर्क स्वत: ही बाप के समीप लायेगा। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा-कोई भी कर्म करने के पहले आदि-मध्य-अन्त को सोच-समझ कर्म किया और कराया। अलबेलापन नहीं कि जैसा हुआ ठीक है, चलो, चलाना ही है। नहीं। तो फॉलो ब्रह्मा बाप। फॉलो करना तो सहज है ना! कॉपी करना है ना, कॉपी करने का तो अक्ल है ना!

अच्छा, ये ग्रुप चांस लेने वाला ग्रुप है। एक्स्ट्रा लॉटरी मिली है। जो अचानक लॉटरी मिलती है तो उसकी खुशी जयादा ही होती है। तो ये लक्की ग्रुप हुआ ना, चांस लेने वाला लक्की ग्रुप। दूसरे सोचते रहते कब जायेंगे और आप पहुँच गये। अब डबल विदेशियों का टर्न शुरू होने वाला है। भारतवासियों ने अपनी लॉटरी ले ली। चारों ओर के डबल विदेशी बच्चों ने जो रिट्रीट का प्रोग्राम बनाया है-उसमें मेहनत अच्छी की। विशेष निमित्त आत्माओं को समीप लाने की विधि अच्छी है। और जितना हिम्मत रख आगे बढ़ते रहे हैं उतनी सफलता हर वर्ष श्रेष्ठ से श्रेष्ठ मिलती रही है। ऐसे अनुभव होता है ना! कोई समय था जो निमित्त विशेष आत्माओं से सम्पर्क करना भी मुश्किल लगता था और अभी क्या लगता है? जितना सोचते हो उससे और ही ज्यादा आते हैं ना! तो ये हिम्मत का प्रत्यक्षफल है। भारत में भी सम्पर्क बढ़ता जाता है। पहले आप निमन्त्रण देने की मेहनत करते थे और अभी स्वयं आने की ऑफर करते हैं। फर्क पड़ गया है ना!वो कहते हैं हम चलें और आप कहते हो नम्बर नहीं है। ये है ‘हिम्मते बच्चे मददे बाप’ का प्रत्यक्ष स्वरूप। अच्छा!

चारों ओर के मास्टर त्रिकालदर्शी आत्माओं को, सदा समय के महत्व को जानने और समय प्रमाण खज़ाने को कार्य में लगाने वाले दिव्य बुद्धिवान आत्माओं को, सदा अन्तर्मुखता की प्रयोगशाला में प्रयोग करने वाली प्रयोगशाली आत्माओं को, सदा हिम्मत द्वारा बाप के मदद का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाली आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दादियों से मुलाकात: -

आप निमित्त आत्मायें किस प्रयोगशाला में रहते हो? सारा दिन कौन-सी प्रयोगशाला चलती है? नई-नई इन्वेन्शन करते रहते हो ना! नये-नये अनुभव करते जाते हो और नई-नई विधि की टचिंग होती रहती है। क्योंकि जो निमित्त हैं उनको विशेष नई-नई बातें टच होने का विशेष वरदान है। थोड़ा समय भी बीतेगा तो विचार चलते हैं ना, टचिंग आती है ना कि अभी ये हो, अभी ये हो, अभी ये होना चाहिये। तो निमित्त आत्माओं को विशेष उमंग-उत्साह बढ़ाने के वा परिवर्तन शक्ति को बढ़ाने के प्लैन की जरूरत है। इसके बिना रह नहीं सकते हैं। बुद्धि चलती है ना। देख-देख आश्चर्यवत् नहीं होते लेकिन उमंग-उत्साह में आगे बढ़ाने के लिए प्लैनिंग बुद्धि बनते हैं। माया संगठन को हिलाने के नये-नये प्लैन बनाती है, नई-नई बातें सुनती हो ना और आप लोग सभी को हिम्मत-उमंग में लाने के प्लैन बनाते हो। कभी आश्चर्य लगता है? नहीं लगता है ना। माया भी पुरानी विधि से थोड़ेही अपना बनायेगी। वो भी तो नवीनता लायेगी ना। अच्छा!

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

अविनाशी अधिकार निश्चित है इस स्मृति से सदा निश्चिन्त रहो, सब बोझ बाप को दे दो

सभी अपने को बाप के वर्से के अधिकारी आत्मायें अनुभव करते हो। अधिकारी आत्माओं की निशानी क्या होती है? अधिकार का निश्चय और नशा रहता है। ये अविनाशी रूहानी नशा है। तो अधिकार में क्या-क्या मिला है, उसकी लिस्ट निकालो तो कितनी है? बड़ी लिस्ट है या छोटी लिस्ट है? तो सदैव अपने भिन्न-भिन्न प्राप्त अधिकारों को सामने रखो। इमर्ज रूप में लाओ। जितना इमर्ज होगा, स्मृति में होगा, तो स्मृति की समर्थी आती है। कभी किस अधिकार को याद करो, कभी किस अधिकार को याद करो। वेराइटी है ना। आजकल के मानव को भी वेराइटी में रूचि होती है ना। तो आपके पास कितनी वेराइटी है? बहुत है ना! कभी वरदान को इमर्ज करो, कभी वर्से में खज़ाने जो मिले हैं उनको इमर्ज करो तो कैसी स्थिति रहेगी? क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति रहती है। अगर स्मृति अधिकार की रही तो स्थिति क्या रहेगी? खुशी में नाचते रहेंगे ना। आजकल की दुनिया में किसी को रिवाजी अधिकार भी मिलता है तो कितना मेहनत करके अधिकार लेते हैं, जानते हैं यह सदा काल का नहीं है फिर भी कितना कुछ करते हैं। और आपको बिना मेहनत के अधिकार मिल गया। मेहनत करनी पड़ी क्या? बच्चा बनना अर्थात् अधिकार लेना। मेरा माना और अधिकार मिला। तो वाह मेरा अधिकार! वाह मैं श्रेष्ठ अधिकारी आत्मा! हद के अधिकार में नहीं, बेहद के अधिकार में। हद के अधिकार के पीछे अगर कोई जाता है तो बेहद का अधिकार गंवाता है। तो सदा बेहद के अधिकार की खुशी में रहो। खुश रहते हो ना? आप जैसी खुशी किसके पास है? निश्चिन्त हो गये, कोई चिन्ता है क्या? पता नहीं, क्या होगा-ये चिन्ता है? निश्चिन्त हैं। क्योंकि अविनाशी अधिकार निश्चित ही है। तो जहाँ निश्चित होता है वहाँ निश्चिन्त होते हैं। कोई भी बात निश्चित नहीं होती है तो उसकी चिन्ता रहती है, पता नहीं क्या होगा! मातायें सभी निश्चिन्त है कि कोई-कोई चिन्ता रहती है? अगर सब बाप के हवाले कर दिया तो निश्चिन्त होंगे। अपने ऊपर बोझ रखा तो निश्चिन्त नहीं होंगे, फिर चिन्ता जरूर होगी। मेरी जिम्मेवारी है, मेरी फर्ज-अदाई है, मेरापन आना माना चिन्ता। अगर फर्ज है या जिम्मेवारी है तो बेहद की है, हद की नहीं। विश्व की है। दो-चार की नहीं। अपने को अभी जगत माता समझती हो कि चार-पांच बच्चे, पोत्रे पोत्रियों की मातायें हो? किसी आत्मा को भी देखेंगे तो क्या लगता है? यह हमारा परिवार है? कि सिर्फ लौकिक को अपना परिवार समझते हो? बेहद परिवार के हैं। बाप की सहयोगी आत्मायें हैं। बेहद का नशा है ना, कि कभी हद का, कभी बेहद का? जैसे बाप वैसे बच्चे होते हैं तो बाप बेहद का बाप है तो बच्चे भी बेहद के हुए ना। तो क्या याद रखेंगे? हम अधिकारी आत्मायें हैं। सिर्फ वर्से के नहीं, वरदानों के भी-डबल अधिकार है। वरदान भी देखो कितने मिलते हैं! रोज वरदान मिलता है ना! तो वरदानों से भी झोली भरते हो और वर्से से भी झोली भरते हो। इसलिये सदा भरपूर रहते हो, खाली नहीं। सदा यह स्मृति रखो कि अनेक बार की अधिकारी आत्मायें हैं।

सभी ठीक है? हलचल तो नहीं है? कभी व्यर्थ की, कभी और कोई परिस्थिति की, प्रकृति की हलचल होती है? जो विश्व को अचल-अडोल बनाने वाले हैं वो स्वयं कैसे हलचल में आयेंगे? परिस्थिति कितनी भी बड़ी हो लेकिन स्व-स्थिति के आगे कितनी भी बड़ी परिस्थिति क्या है? कुछ भी नहीं है। महारथी को कोई हिला नहीं सकता। तो स्वयं सदा अचल बन औरों को भी अचल बनाना। हलचल का नामनिशान भी नहीं। बाप से प्यार है ना तो प्यार की निशानी होती है समान बनना।

ग्रुप नं. 2

अपने श्रेष्ठ टाइटल्स की स्मृति से रूहानी नशे का अनुभव करो, वाह-वाह के गीत सदा गाते रहो

सदा क्या से क्या बन गये-ये स्मृति रहती है? कल कौड़ी तुल्य थे और आज हीरे तुल्य बन गये। तो कहाँ कौड़ी और कहाँ हीरा-कितना अन्तर है? जब अन्तर का मालूम होता है तो कितनी खुशी होती है! बाप ने क्या से क्या बना दिया! कल अन्धकार में थे और आज रोशनी में आ गये। तो अन्धकार में क्या मिला? ठोकरें मिली ना। अन्धकार में ठोकर खाते हैं और रोशनी में इनज्वाय करते हैं। तो कल क्या और आज क्या - ये सदा सामने स्पष्ट हो। और बापदादा सदा कहते हैं कि डबल हीरो बन गये। एक हीरे समान जीवन और दूसरा इस ड्रामा के हीरो एक्टर बन गये। तो डबल हीरो हो गये ना। अगर सारे ड्रामा के अन्दर देखो तो हीरो पार्टधारी कौन है? कहेंगे ना हम हैं। तो डबल हीरो हैं। तो डबल खुशी है ना। ऐसे तो देखो आपको बाप द्वारा कितने टाइटल मिलते हैं? टाइटल्स की लिस्ट है ना। रोज की मुरली में कोई न कोई विशेष टाइटल मिलता है। तो टाइटल का कितना नशा होता है! किसको प्रधान मन्त्री या प्रेजीडेन्ट टाइटल दे तो कितना नशा रहेगा! और आपको टाइटल देने वाला कौन? जो भाग्यविधाता बाप है वो स्वयं बच्चों को टाइटल देते हैं। तो जैसे बाप अविनाशी तो टाइटल भी अविनाशी। विनाशी टाइटल का नशा विनाशी, अल्पकाल का रहता है। और ये रूहानी टाइटल का नशा अविनाशी है। जिसे अविनाशी नशा रहता है उसके दिल में सदा ये गीत बजता है-वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! ऑटोमेटिक बजता है, बजाना नहीं पड़ता है। दूसरी जो भी मशीनरीज होती हैं वो आज ठीक हैं, कल खराब हो जायेंगी लेकिन ये दिल का गीत सदा ही बजता रहता है। तो ये गीत गाना आता है? कौन-सा गीत? वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य! जैसे देह का आक्युपेशन स्वत: याद रहता है। एक बार मालूम पड़ा कि मैं ये हूँ तो भूलता नहीं है। तो ‘मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ’ ये अविनाशी आक्युपेशन भी भूलना नहीं चाहिये। ये हर जन्म का आक्युपेशन है। वो एक जन्म का आक्युपेशन होता है। चाहे शरीर बदलेंगे लेकिन आत्मा तो अविनाशी है ना। कोई भी जन्म में आत्मा तो अमर ही है, अविनाशी है। लेकिन इस समय आप विशेष आत्मायें हो। आत्मा तो हो ही लेकिन विशेष आत्मा हो। अपनी विशेषतायें सदा याद रहती हैं?

तो डबल हीरो हो साधारण पार्टधारी नहीं। हीरे समान बने हो या अभी भी कुछ पत्थर है, कुछ हीरा है? कहाँ हीरे की वैल्यु, कहाँ पत्थर की वैल्यु! अगर विस्मृति है तो पत्थर है और स्मृति है तो हीरा है। अब विस्मृति का समय समाप्त हुआ। जो हूँ, जैसा हूँ-वो भूल नहीं सकता। तो विस्मृति की दुनिया को छोड़ कर आ गये। अभी संगमयुग स्मृति का युग है। कलियुग विस्मृति का युग है। तो आप सब संगमयुग के रहवासी हो या कभी-कभी कलियुग में चक्कर लगाने चले जाते हो? अगर थोड़ा भी बुद्धि गई तो चक्कर में फंस जायेंगे। विस्मृति की दुनिया से निकल आये। कलियुग में तो बहुत रौनक है! तो उस रौनक को क्यों छोड़कर आ गये? रौनक जरूर है लेकिन धोखा देने वाली रौनक है। बाहर से रौनक दिखाई देती है और अन्दर धोखा देने वाली है। क्या अनुभव है? धोखा देने वाली रौनक है ना। सब अच्छी तरह से अनुभव कर चुके हो ना? कि अभी कुछ अनुभव करना बाकी है? धोखा खाते-खाते थक गये। आर्टीफिशयल दुनिया है ना। लेकिन चमक आर्टीफिशयल की जयादा है। तो कभी आर्टीफिशयल चमक आकर्षित तो नहीं करती? जब एक बार धोखा खाकर देख लिया तो दुबारा धोखा खाया जाता है क्या? इसलिये बच गये।

मातायें अपना श्रेष्ठ भाग्य देख खुशी में नाचती रहती हो ना। संगम पर शक्तियों की बारी पहले है। द्वापर-कलियुग में पाण्डवों को चांस मिलता है और संगम पर शक्तियों को चांस मिलता है। अभी देखो बाप ने माताओं को चांस दिया तो दुनिया में भी आजकल माताओं को चांस देने का बुद्धि में आया है। धर्मनेताओं में देखो पहले कोई माता नहीं होती थी लेकिन अभी महामण्डलेश्वरियां भी हैं। अभी मातायें भी गुरू बन जाती हैं। तो जब बाप ने चांस दिया तो लोग भी चांस देने लगे। तो माताओं को डबल खुशी है ना कि हमको बाप ने ऊंचा बना दिया!

ग्रुप नं. 3

सर्व श्रेष्ठ शक्ति शान्ति की शक्ति है - जिससे असम्भव को भी सम्भव बना सकते हो

एक बल एक भरोसा - ऐसी श्रेष्ठ आत्मा हैं, ऐसे अनुभव करते हो? एक बल एक भरोसा है या अनेक बल अनेक भरोसे हैं? एक बल कौन सा है? साइलेन्स का बल, योग का बल। एक बाप में भरोसा अर्थात् निश्चय होने से यह साइलेन्स का बल, योग का बल स्वत: ही अनुभव होता है। तो साइलेन्स की शक्ति वाले हैं, योग बल वाले हैं - यह स्मृति रहती है? शान्ति की शक्ति सर्व श्रेष्ठ शक्ति है। क्योंकि और सभी शक्तियां कहाँ से निकलती हैं? शान्ति की शक्ति से ना! आज साइन्स की शक्ति का प्रभाव है लेकिन वह भी निकली कहाँ से? शान्ति की शक्ति से निकली ना? तो शान्ति की शक्ति द्वारा जो चाहो वह कर सकते हो। असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो। जो दुनिया वाले आज असम्भव कहते हैं आपके लिए वह सम्भव है ना! तो सम्भव होने के कारण सहज लगता है। मेहनत नहीं लगती। दुनिया वाले तो अभी भी यही सोचते रहते हैं कि परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। और आप क्या कहेंगे? पा लिया। वह कहेंगे कि परम आत्मा तो बहुत ऊंचा हजारों सूर्यों से भी तेजोमय है और आप कहेंगे वह तो बाप है। स्नेह का सागर है। जलाने वाला नहीं है। हजारों सूर्य से तेजोमय तो जलायेगा ना और आप तो स्नेह के सागर के अनुभव में रहते हो, तो कितना फर्क हो गया। जो दुनिया ना कहती वह आप हाँ करते। फर्क हो गया ना। कल आप भी नास्तिक थे और आज आस्तिक बन गये। कल माया से हार खाने वाले और आज मायाजीत बन गये। फर्क है ना। मातायें जो कल पिंजड़े की मैना थी और आज उड़ती कला वाले उड़ते पंछी है। तो उड़ती कला वाले हो या कभी-कभी वापस पिंजड़े में जाते हो? कभी-कभी दिल होती है पिंजड़े में जाने की? बंधन है पिंजड़ा और निर्बन्धन है उड़ना। मन का बंधन नहीं होना चाहिए। अगर किसी को तन का बंधन है तो भी मन उड़ता पंछी है। तो मन का कोई बंधन है या थोड़ा-थोड़ा आ जाता है? जो मनमनाभव हो गये वह मन के बंधन से सदा के लिए छूट गये। अच्छा, प्रवृत्ति को सम्भालने का बंधन है? ट्रस्टी होकर सम्भालते हो? अगर ट्रस्टी हैं तो निर्बन्धन और गृहस्थी हैं तो बंधन है। गृहस्थी माना बोझ और बोझ वाला कभी उड़ नहीं सकता। तो सब बोझ बाप को दे दिया या सिर्फ थोड़ा एक दो पोत्रा रख दिया है? पाण्डवों ने थोड़ा-थोड़ा जेबखर्च रख दिया है? थोड़ा-थोड़ा रोब रख दिया, क्रोध रख दिया, यह जेबखर्च है? मेरे को तेरा कर दिया? किया है या थोड़ा-थोड़ा मेरा है? ठगी करते हैं ना मेरा सो मेरा और तेरा भी मेरा। ऐसी ठगी तो नहीं करते? आधाकल्प तो बहुत ठगत रहे ना। कहना तेरा और मानना मेरा तो ठगी की ना। अभी ठगत नहीं लेकिन बच्चे बन गये। उड़ती कला कितनी प्यारी है, सेकेण्ड में जहाँ चाहो वहाँ पहुंच जाओ। उड़ती कला वाले सेकेण्ड में अपने स्वीट होम में पहुंच सकते हैं। इसको कहा जाता है योगबल, शान्ति की शक्ति।

माताओं को नाम ही दिया है शिव शक्तियां। तो शक्ति नाम याद आने से स्वत: ही शक्ति आ जायेगी। हम घर की मातायें हैं तो कमज़ोर हैं। शक्ति हैं तो शक्तिशाली हैं। एक बल एक भरोसा अर्थात् सदा शक्तिशाली। पाण्डवों को भी सदा शक्तिशाली दिखाते हैं। कल्प कल्प की शक्तियां और पाण्डव सेना वाले हैं - यह स्पष्ट स्मृति है ना तो हम ही थे, हम ही हैं और सदा हम ही बनेंगे। यह स्मृति स्पष्ट है कि सोचते हो तो याद आता है? या सुना है तो समझते हो? नहीं। दिल में वह इमर्ज होना चाहिए। बुद्धि में स्पष्ट होना चाहिए-हाँ हम ही थे, हैं और होंगे। जहाँ एक बल एक भरोसा है वहाँ कोई हिला नहीं सकता। ऐसी कोई मायावी शक्ति है कि कमज़ोर है? एक बल एक भरोसे वाली आत्माओं के आगे माया मूर्छित हो जाती है, सरेन्डर हो जाती है। सरेन्डर हो गई कि कभी कभी जाग जाती है? तो सदा मायाजीत कभी हार कभी जीत वाले नहीं। सदा विजयी। तो यही नशा सदा रहे कि विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है। यह रूहानी नशा है ना। इस जन्म-सिद्ध अधिकार को कोई छीन नहीं सकता।

ग्रुप नं. 4

मधुबन निवासी बनना अर्थात् बेहद सेवा की स्टेज पर आना

मधुबन निवासियों से सबका प्यार है ना। सभी का मधुबन निवासियों से प्यार क्यों है? क्या कारण है? मधुबन निवासियों से सबका प्यार इसीलिए है क्योंकि मधुबन निवासी अर्थात् बड़े ते बड़े सेवाधारी। मधुबन निवासी होना अर्थात् सेवा की स्टेज पर आना। जो भी मधुबन में आये तो सेवा के लिए आये ना। और बापदादा भी अपने ऊपर सबसे बड़े से बड़ा टाइटल विश्व सेवाधारी का ही देते हैं। तो मधुबन निवासी अर्थात् जितना बाप से प्यार उतना सेवा से प्यार। मधुबन निवासी हर सेकण्ड सेवा की स्टेज पर रहते हैं। चलते फिरते सेवा ही करते हो ना! एक्जैम्पुल हो ना! तो मधुबन निवासी हर आत्मा को, हरेक आत्मा विशेष आत्मा के रूप में देखती है। मधुबन निवासी अर्थात् विशेष आत्मा। संकल्प में भी विशेषता, बोल में भी विशेषता और कर्म में भी विशेषता। कितना महत्व है मधुबन निवासी आत्माओं का। ऐसी स्मृति रहती है? मधुबन को सब फॉलो करते हैं। मधुबन के बाप से प्यार है तो मधुबन निवासियों से भी प्यार है। जैसे मधुबन के बाप की महिमा वैसे मधुबन निवासियों की महिमा है। क्योंकि मधुबन बाप की कर्मभूमि, चरित्रभूमि सो तपस्वी भूमि है। ऐसे भूमि का अनुभव होता है ना? भूमि का वायब्रेशन, वायुमण्डल सहयोग देता है। मधुबन वालों के ऊपर बापदादा की भी विशेष ब्लैसिंग है। तो अपने श्रेष्ठ भाग्य को प्रैक्टिकल में अनुभव करते हुए आगे बढ़ रहे हो? सभी उड़ती कला वाले हो या कभी रूकती कला कभी उड़ती कला? ब्रह्मा बाप की विशेषता कौन सी गायन करते हो?अथक सेवाधारी। तो पुरूषार्थ की गति में भी अथक। थकने वाले नहीं, औरों को भी उड़ाने वाले। जिम्मेवारी है ना। क्योंकि मधुबन वालों को सभी सहज फॉलो करते हैं।

तो इस वर्ष में अपने तीव्र पुरूषार्थ का कोई विशेष प्लैन बनाया है? क्योंकि मधुबन के पुरूषार्थ की लहर भी चारों ओर फैलती है। मधुबन वाले भट्टी करते हैं, तपस्या पावरफुल करते हैं तो चारों ओर वह वायब्रेशन जाता है। तो कुछ नया तीव्र गति का प्लैन बनाओ। जैसे कोई भी बड़ा स्थान बनाते हैं तो पहले क्या करते हैं? ज्ञान सरोवर बनाना था तो पहले मॉडल बनाया ना। तो मधुबन निवासी हैं मॉडल। तो जितना मॉडल वैल्युएबुल होता है, उतना ही ओरीज्नल मकान भी वैल्युएबुल होता है। निमित्त तो मॉडल ही बनता है ना। कोई नया प्लैन बनाया है?क्योंकि मधुबन निवासी इन्वेन्टर हैं ना। (आपने जो होमवर्क दिया वह करेंगे) अच्छा, मधुबन निवासी पहले मधुबन के ग्रुप में प्रयोग करके अनुभव सुनायेंगे तो सबमें उमंग-उत्साह आयेगा। जिसको भी देखें सबका एक दृढ़ संकल्प हो तो संगठन का बल तो मिलता है ना। मधुबन की यही विशेषता सभी को प्रिय लगती है कि हर आत्मा का हर कर्म विशेष हो। साधारण नहीं। क्योंकि यहाँ सहयोग बहुत है। एक तो सभी आत्माओं की शुभ भावना का मधुबन निवासियों को बहुत सहयोग है। कोई भी बात होगी तो सभी की भावना पहले मधुबन के तरफ जाती है। वायुमण्डल की, पढ़ाई की, बाहर के पोल्युशन की कितनी मदद है यहाँ मधुबन में। प्रकृति की पोल्युशन भी नहीं है। तो रिजल्ट में मधुबन निवासी सभी किस माला में आयेंगे? पहली माला या दूसरी माला? पहली में। सारी सीट मधुबन वाले ही लेंगे? सभी खज़ानों से भरपूर हो ना? कि कोई कमी है? कोई सैलवेशन चाहिए? कि सदा तृप्त आत्मायें हो? सभी ज्ञान के खज़ानों में भी भरपूर, शक्तियों में भी भरपूर, गुणों में भी भरपूर? (हाँ जी) गुणमूर्त देखना हो तो कहाँ देखें? मधुबन में या और स्थानों में? सबमें मधुबन नम्बरवन। जिसको जब देखें जहाँ देखें गुणमूर्त, शक्तिमूर्त, ज्ञान मूर्त, साधारण नहीं। मधुबन माना ही विशेष। मधुबन वाले बेफ़्रिक बादशाह तो हैं ही या कोई फ़्रिक रहता है? (सम्पूर्ण बनने का) यह फ़्रिक फखर में लाता है। फ़्रिक, फ़्रिक नहीं है फखर है। बनना ही है। अच्छा।

मधुबन निवासियों के तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन कौन सा है? (जो कर्म हम करेंगे हमें देख और करेंगे) सलोगन ठीक सुनाया। जो भी कर्म करो पहले यह सलोगन याद रखो कि जो हम करेंगे वह सब करेंगे। तो स्वत: ही विशेष कर्म होगा। अच्छा, बाकी कारोबार तो ठीक चल रही है ना। सबकी डिपार्टमेंट ठीक है? अच्छा!

जब स्व के प्रति प्रयोग में सफल हो जायेंगे तो दूसरी आत्माओं के प्रति प्रयोग करना सहज हो जायेगा और जब स्व के प्रति सफलता अनुभव करेंगे तो आपके दिल में औरों के प्रति प्रयोग करने का उमंग-उत्साह स्वत: ही बढ़ता जायेगा। अन्य आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में स्व के प्रयोग द्वारा उन आत्माओं को भी आपके प्रयोग का प्रभाव स्वत: ही पड़ता रहेगा।